डॉ हनुमानवाणी आध्यात्म ज्ञान संजीवनी

अगहन कृस्न मास १० विक्रम सम्बत २०६४ ,अग्रेजी कैलेंडर से सन २००७ को श्री हनुमान जी ने ग्वालियर में निवास कर रहे महामण्डलेस्वर संत रामदास जी महाराज महन्त दंदरौआ धाम के एक गृहस्थ शिस्य ''कुलदीप सेंगर '' के मन मष्तिस्क को अपनी शूछम तरंगो से ऐसे आवेशित किया कि वे पूजा के दौरान ही अपने अंतर्मन के द्वन्द में इस आध्यात्म ज्ञान संजीवनी के ताने बाने बुनने लगे!
२वर्श पूर्व ली गई गुरुदीछा के बाद उनके मन में गुरु के लिए गुरुदक्षिणा देने की इच्छा प्रबल हुई ! अंतर मन में श्री हनुमान जी की प्रेरणा हुई ,और आध्यात्म ज्ञान के प्रचार ,प्रसार के लिए प्रभु ने उन्हें निमित्त बनाया! आँखों में आनन्दाश्रु बहने लगे,मस्तिस्क में आध्यात्मिक विचारों का संचार होने लगा ,अंतर्मन में ही अदृस्य शक्ति से प्रेरणा मिली कि पत्रिका के लिए टाइटिल'' डॉ हनुमान वाणी '' रखो,क्यों कि छेत्रीय लोग उन्हें दर्द हरने के देवता के रूप में सहज सरल भाषा में इसी नाम से पुकारते है !मन अध्यात्म सरोवर में डुबकी लगा कर आध्यात्मज्ञान के मोती खोजने लगा, और लेखनी ने उसे प्रेम के धागे में पिरोकर केवल ५ घण्टे में पत्रिका के स्वरुप को भक्ति की माला में पिरो दिया !अवर्णीय ,अद्भुत अनुभव था जिसे सब्दो में बयां करना कठिन हो रहा है !

कहते है जब हरि की कृपा से हरि का ही काम होना हो तो सभी परिस्थियाँ अनुकूल हो जाती है !डॉ हनुमानवाणी के प्रकाशन की सुरुआत में भी ऐसा ही हुआ ! ५ घंटे में तैयार आध्यात्म ज्ञान संजीवनी की सूचना जब दूरभाष से श्री श्री १००८ महामंडलेश्वर संत रामदास जी महाराज महंत श्री हनुमान मंदिर दंदरौआ धाम को बताई गई तो उनका जवाब था की -''ये तो हनुमान जी के आदेश है इसे तो करना ही है ! एक बार आप (कुलदीप सेंगर ) आश्रम आ जाएँ फिर तो हनुमान जी आप को बुलाते है रहेंगे !''

गुरु की स्वीकृति और हनुमान जी के आदेश के समछ नतमस्तक हो उन्होंने इसके मुद्रण के लिए ग्वालियर शहर के मुद्रक से संपर्क किया !चुकि दैवयोग से दंदरौआ धाम में महंत बाबा पुरुसोत्तम दाश जी का सिय -पिय मिलान समारोह एक सप्ताह बाद सुरू होने वाला था जिसमे डॉ श्यामसुन्दर परासर जी द्वारा श्रीमद्भागवत कथा का वचन किया जाना था, इस लिय इस पवन अवसर पर डॉ हनुमानवाणी का प्रकाशन उनके लिए अति महत्वपूर्ण था ! उन्होंने मुद्रक से ६दिन की समयसीमा में इसका मुद्रणकार्य संपन्न करने को कहा !पहले तो उसने इतने सीमित समय में इसे करने में अपनी असमर्थता ब्यक्त की, किन्तु जैसे ही पत्रिका के कवरपेज में श्री हनुमान जी का चित्र देखा तो उनके मस्तिस्क के विचार बदल गए और सभी कार्य रोक कर अपने अनेक मुद्रकों को अलग अलग हिस्सों में प्रिंटिंग सामग्री बाँट कर सायंकाल ७:३० बजे तक आवश्यक सामग्री का प्रिंट तैयार कर दिया ! ये निश्चित ही श्री हनुमान जी की ही प्रेरणा थीं !

यैसी दैवयोगीय चमत्कृत करने वाली घटनाएँ लगातार घटित होने लगीं, जैसे कोडेक लैब से जब कवर पेज का प्रिंट तत्काल मांगा तो उसने साफ मना कर दिया किन्तु जब संपादक महोदय ने कहा कि सीडी से कवर पेज का डिजायन अपने कंप्यूटर में सेफ कर सीडी वापस कर दो ,तो वह इतना काम करने को तैयार हो गया किन्तु जैसे ही उसने सीडी से कवर पेज अपने कम्प्यूटर में सेव किया वैसे ही उसके मन में भक्तिभाव का संचार होने लगा और उसने तत्काल कवरपेज का रंगीन पृष्ठ निकाल कर दे दिया !इन आश्चर्य जनक घटनावो ने संपादक कुलदीप जी का आत्म विश्वाश दृढ़ कर दिया ! दूसरे दिन आश्रम जाने के लिए उनकी पत्नी सहित कुछ बुजुर्ग माताएं भी तैयार थी, बिना स्वयम के साधन से दंदरौआ धाम पहुचना कठिन लगरहा था, क्यों कि ७० किलोमीटर की दुरी के लिए कोई स्थाई यातायात ब्यवस्था नहीं थी, वे इसी चिंतन में रात्रि में घर के बाहर टहल रहे थे की उनके पडोश में रहने वाले एक मित्र ने उनसे नमस्कार कर उनके चिंतनभाव पर प्रश्न किया, जब उन्होंने उनसे अपनी चिता का कारण बताया तो उन्होंने स्वयम की कार से सभी को इस लालच से ले जाने को कहा कि इसी बहाने उन्हें डॉ हनुमान जी के दर्सन का सौभाग्य मिलेगा ! बहराल श्री हनुमान जी ने सभी कार्य सुगम कर दिए !यात्रा शुभ रही, डॉ हनुमानजी ने अब उन्हें अपनी सेवा में लगा लिया था !, गुरु के आशीर्वाद से वे इस आध्यात्म ज्ञान संजीवनी के सम्बाहक के निमित्त बनाये गए थे !, ठीक एक सप्ताह बाद डॉ हनुमानवाणी मासिक का विमोचन महामण्डलेस्वर संत रामदास जी महाराज एवं प्रसिद्द भागवताचार्य डॉ श्याम सुन्दर परासर जी ने महंत बाबा पुरुसोत्तमदास जी महराज की पुण्य स्मृति में प्रतिवर्ष मनाये जाने वाले सिय -पिय मिलान समारोह में सैकड़ों संत एवं हजारों श्रद्धालुओं के बीच किया !

डॉ हनुमानवाणी के विमोचन के पाश्चात अब इसे दिल्ली से टाइटिल ले कर पंजीयन प्रमाणपत्र प्राप्त करने का कार्य प्रारम्भ हुआ ,ग्वालियर कलेक्ट्रेट कार्यालय से आवेदन फार्म ले भरकर जब एस डी एम महोदय से हस्ताक्छर करने के लिए संपादक महोदय गए तो अपरिचित होने के वावजूद उन्होने अपनी जरुरी मीटिंग छोड़कर तत्काल पत्र बनवाकर अपने सामने डिस्पेच करा कर डिस्पेच नंबर संपादक को दिया !लगभग ६० मिनट तक अतिथि सत्कार भी किया ,दिल्ली पंजीयन कार्यालय में जहाँ अनेक कठिनाइयों का सामना करना होता है वहां भी हनुमान भक्तों ने सहयोग कर पंजीयन कार्य आसान कर दिया ! डाक पंजीयन भी सरलता से हो गया ! संपादन कार्य में जब भी कठिनाई का अहसास हुआ कोई न कोई डॉ हनुमान द्वारा भेजा गया विद्वान दूत ने रास्ता आसान कर दिया ! पत्रिका का जिस भक्ति भाव से निःशुल्क कुलदीप सेंगर जी संपादन कार्य कर रहे है उसी भक्ति भाव के सहयोगी भी डॉ हनुमान जी ने उनसे निःशुल्क सेवा भावी जोड़ दिए है !

डॉ हनुमानवाणी का प्रसार भारत के १४ प्रदेशों तक हो चुका है !इसका संपादन ,प्रकाशन ,संपादक कुलदीप सेंगर (मोब :९९२६६४७६०९ ) के निज निवास ८४ /८५ लाइन नो ३ बिरला नगर ग्वालियर से ही किया जा रहा है ! सोसल मिडिया प्रभारी श्री सुमित झा ( ९०१५४३८५८०)

डॉ. हनुमानवाणी मासिक पत्रिका अंक